Tuesday, July 23, 2019

Tenses in Sanskrit

संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं।


•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है


इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।


•• इन दस लकारों में से

~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-

लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और


~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।


•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से


 पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं


तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।


•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।


जैसे –


••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,


•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।


(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )

~~~~ जैसे :-

श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।


(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।

~~~~ जैसे :--

रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।


(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।

~~~~ जैसे :--

सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।


(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।

~~~~ जैसे :---

रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।


(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )


(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )

~~~~ जैसे :-

• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;

• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;

• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;

• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?


(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।

~~~~ जैसे :-

भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।


(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--


(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )

~~~~ जैसे :-

• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;

• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।


(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)

~~~~ जैसे :-

• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;

• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।


(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।

~~~~ जैसे :-

अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।


(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।

~~~~ जैसे :-

यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।


इस बात को स्मरण रखने के लिए कि

•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-


लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्‍तथा ।


विध्‍याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्‍यति ॥


अर्थात्


~ लट् लकार वर्तमान काल में,


~ लेट् लकार केवल वेद में,


~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,


~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा


~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)


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लकारों के नाम याद रखने की विधि-

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" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें


और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।


फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।


जैसे


•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्


•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥


इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।


अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--

आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।


इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।

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