Monday, July 22, 2019

अमृत-सूक्त

आत्मबल-वर्धक ‘अमृत-सूक्त

अग्निर्मे वाचि श्रितः। वाग्घृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१
वायुर्मे प्राणे श्रितः। प्राणो हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।२
सूर्यो मे चक्षुषि श्रितः। चक्षुर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।३
चन्द्रमा मे मनसि श्रितः। मनो हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।४
दिशो मे श्रोत्रे श्रिताः। श्रोत्र हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।५
आपो मे रेतसि श्रिताः। रेतः हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।६
पृथिवी मे शरीरे श्रिताः। शरीरं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।७
ओषधीर्वनस्पतयो मे लोमसु श्रिताः।लोमानि हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।८
इन्द्रो मे बले श्रितः। बलं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।९
पर्जन्यो मे मूर्ध्नि श्रितः। मूर्धा हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१०
ईशानो मे मन्यौ श्रितः। मन्युर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।११
आत्मा मे आत्मनि श्रितः। आत्मा हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१२
पुनर्म आत्मा पुनरायुरागात् पुनः प्राणः पुनराकृतमागात्।
वैश्वानरो रश्मिभिर्वावृधानः अन्तस्तिष्ठन्नमृतस्य गोपाः।।१३(तैत्तिरिय ब्राह्मण, ३।१०।८)

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