Sunday, July 28, 2019
Friday, July 26, 2019
English- sanskrit sentences
*English- sanskrit sentences*
*आंग्ल संस्कृत वाक्य*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Seeta plays.
'Seeta kreedati
( सीता क्रीडति )'
you play.
'tvam kreedasi .(त्वं क्रीडसि )'
I play.
' aham kreedaami
(अहं क्रीडामि )'
Alex says. '
Alexha vadati
( अलेक्षः वदति )'
You say.
'tvam vadasi
(त्वं वदसि )'
I say. '
aham vadaami
(अहं वदामि )'
This person (referring to he) sits.
'eshaha upavishati
(एषः उपविशति)'
You sit.
'tvam upavishasi
(त्वम् उपविशसि )'
I sit.
'aham upavishaami
(अहम् उपविशामि )'
Tuesday, July 23, 2019
मोऽनुस्वारः
पदाच्या शेवटी 'म् ' असेल व पुढे स्वर असेल तो अन्त्य 'म्' तसाच ठेवावा. किंवा तो पुढील स्वरात मिळवून त्यांचे पूर्ण अक्षर करावे जसे-(१)अहम् अस्मिता। किंवा अहमस्मि। (२) त्वम् उर्वशी। किंवा त्ममुर्वशी।
पदान्ती 'म्' असून पुढे व्यंजन आल्यास 'म्'बद्दल त्यामागील अक्षरावर अनुस्वार लिहावा. जसे (१) त्वं शङ्कर:।( २) त्वं यमुना।
वाक्याच्या शेवटीच्या पदान्ती 'म्' असेल तर तो तसाच ठेवावा. जसे (१) गजानन: अहम्।( २) सुरेश: त्वम्। 🙏🏽🙏🏽🙏🏽
पदान्ती 'म्' असून पुढे व्यंजन आल्यास 'म्'बद्दल त्यामागील अक्षरावर अनुस्वार लिहावा. जसे (१) त्वं शङ्कर:।( २) त्वं यमुना।
वाक्याच्या शेवटीच्या पदान्ती 'म्' असेल तर तो तसाच ठेवावा. जसे (१) गजानन: अहम्।( २) सुरेश: त्वम्। 🙏🏽🙏🏽🙏🏽
तुम् प्रत्ययान्त हेत्वर्थक रूप
क्रियापद
******[ ' तुम ' प्रत्ययान्त हेत्वर्थक रूप ]
१, गन्तुम् = जाने के लिये
२, पातुम् = पीने के लिये ।
३, पठितुम् = पढ़ने के लिये ।
४, द्रष्टुम् = देखने के लिये ।
५, क्रीडितुम् = खेलने के लिये ।
६, वक्तुम् = बोलने के लिये ।
७, धावितुम् = दौड़ने के लिये ।
८, पतितुम् = गिरने को लिये ।
९, आगन्तुम् = आने के लिये ।
१०, लिखितुम् = लिखने के लिये ।
११, स्थातुम् = ठहरने के लिये ।
१२, भक्षयितुम् = खाने के लिये ।
१३, कर्तुम् = करने के लिये ।
१४, भवितुम् = होने के लिये ।
१५, अर्चितुम् = पूजने के लिये ।
१६, खेलितुम् = खेलने के लिये ।
१७, चलितुम् = चलने के लिये ।
१८, धारयितुम् = धारण करने के लिये ।
१९, कथयितुम् = कहने के लिये ।
२०, क्षालयितुम् = धोने के लिये
२१, पालयितुम् = पालन करने के लिये ।
२२, तुलयितुम् = तोलने के लिये ।
निम्नांकित वाक्यों का हिन्दी मे अनुवाद कीजिए :---
१, अहं तत्र स्थातुं गच्छामि ।
२, दुग्धं पातुं कः न इच्छति ?
३, सः पठितुं शालां गच्छति
४, उद्यानं द्रष्टुं सः तत्र गमिष्यति ।
५, किं त्वं क्रीडितुं न आगमिष्यसि ?
६, स सभायां वक्तुं गमिष्यति ।
७, अश्वः धावितुम् सज्जः ।
८, पतितुं कः इच्छति ?
९,किं सः अत्र आगन्तुं इच्छति?
१०, अहं पत्रं लिखितुं इच्छामि ।
११, सः तत्र स्थातुं न शक्तः ।
१२, मोदकान् भक्षयितुं तत्र गच्छामि ।
१३, त्वं किं कर्तुं इच्छसि ?
१४, सः नृपतिः भवितुं योग्यः ।
१५, कः शुकं पालयितुं इच्छति?
क्रियापद
अट् = भटकना
अटति = भटकता है ।
अटन्ति = भटकते हैं ।
अटसि = भटकता हैं ।
अटथ = भटकते हैं ।
अटामि = भटकता हूँ ।
अटामः = भटकते हैं ।
अटिष्यति = भटकेगा ।
अटिष्यन्ति = भटकेंगे ।
अटिष्यसि = भटकेगा ।
अटिष्यथ = भटकोगे ।
अटिष्य़ामि = भटकूँगा ।
अटिष्यामः = भटकेंगे ।
अर्च = पूजना
अर्चति = पूजता हैं ।
अर्चन्ति = पूजते हैं ।
अर्चसि = पूजता हैं ।
अर्चथ = पूजते हैं ।
अर्चामि = पूजता हूँ ।
अर्चामः = पूजते हैं ।
अर्चिष्यति = पूजेगा ।
अर्चिष्यथ = पूजोगे ।
अर्चिष्यसि = पूजेगा ।
अर्चिष्यामः = पूजेंगे ।
अर्चिष्यामि = पूजूँगा ।
अर्चिष्यन्ति = पूजेंगे ।
खेल् = खेलना
खेलति = खेलता हैं ।
खेलन्ति = खेलते हैं ।
खेलसि = खेलता हूँ ।
खेलथ = खेलते हैं ।
खेलामि = खेलता हूँ ।
खेलामः = खेलतें हैं ।
खेलिष्यति = खेलेगा ।
खेलिष्यन्ति = खेलेंगे ।
खेलिष्यसि = खेलेगा ।
खेलिष्यन्ति = खेलेंगे ।
खेलिष्यसि = खेलेगा ।
खेलिष्यथ = खेलोगे ।
खेलिष्यामि = खेलूँगा ।
खेलिष्यामः = खेलेंगे ।
चल् = चलना
चलति = चलता है ।
चलन्ति = चलतें है ।
चलसि = चलता हैं ।
चलथ = चलते हो ।
चलामि = चलता हूँ ।
चलामः = चलते हैं ।
चलिष्यति = चलेगा ।
चलिष्यन्ति = चलेंगे ।
चलिष्यसि = चलेगा ।
चलिष्यथ = चलोगे ।
चलिष्यामि = चलूँगा ।
चलिष्यामः = चलेंगे ।
संस्कृत में अनुवाद कीजिए :--
१, वहाँ बालक पूजा करते हैं ।
२, आलसी आदमी शीघ्र नही चलता ।
३, आलसी लड़का खेल के मैदान में नही खेलता ।
४, क्या तू उस विद्यालय में खेलेंगा ।
५,बसन्त वहाँ पर अवश्य खेलेंगा ।
६,वे छात्र प्रतिदिन वहाँ खेलते हैं ।
७, क्या वह बालक उस उद्यान
में भटकता हैं ?
८, यदि तू प्रातःकाल घूमेंगा तो
निरोग हो जायेगा ।
९, बगीचें में फूल होते हैं ।
१०, तालाब में कमल होते हैं ।
११, वृक्ष पर फल होते हैं ।
१२, क्या वहाँ छात्र नही होंगे ?
१३, यदि वहाँ छात्र होंगे तो मैं उनके साथ खेलूँगा ।
१४, क्या तू मेरे साथ भोजन करेंगा ?
१५, मैं तो आज भोजन नहीं करूँगा ।
१६, घोड़े शीघ्र दौड़ते हैं ।
१७, स्वस्थ मनुष्य तेज चलते हैं
१८, वह अस्वस्थ बालक कैसे शीघ्र चलेगा ?
१९, क्या तू प्रातःकाल देव की पूजा नहीं करेगा ?
२०, हम तो देव की सायंकाल मन्दिर में प्रतिदिन पूजते हैं ।
२१, तुम सब परमेश्वर को क्यों
नहीं पूजते ?
२२, क्या तुम कल परमेश्वर को अवश्य पूजोगे ?
**
शब्द
१, बलीवर्दः, वृषभः = बैल ।
२, कृषकः, कृषीवलः = किसान
३, सस्यम्, धान्यम्, = अन्न ।
४, तृणम् = घास ।
५, क्षेत्रम् = खेत ।
६, कृषकः = हल चलाने वाला ।
७, हलम् = हल ।
८, बीजम् = बीज
९, वर्षाकालः = बरसात का
समय ।
१०, आलवालम् = थांबला ।
११, मेघः बादल ।
१२, स्वापः = नींद ।
१३, दीपः = दीया ।
१४, गुडः = गुड़ ।
१५, खेटः, खेटकः = गाँव (खेडा
१६, क्रयणम्, क्रयः = खरीदी ।
१७, विक्रयः = बिक्री ।
१८, आपणः = दुकान ।
१९, हट्टः = बाजार ।
२०,आपणिकः = दुकानदार ।
२१, गोष्ठीगृहम् = चौपाल (क्लब
**
वेदाङ्गानि
वेदाङ्ग
वेद के ६ अंग हैं== शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प।
१. शिक्षा ~~ इसमें वेद का शुद्ध पाठ करने के लिये ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, समाहार, स्वरित्,अनुनासिक आदि भेद से शिक्षा दी गई है, क्योंकि उच्चारणज्ञान के न होने से अनर्थ की प्राप्ति होती है। सर्ववेदों के लिए साधारण शिक्षा को श्री पाणिनी मुनि ने "अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि" इत्यादि से आरंम्भ करके नौ खंडों में प्रकाशित किया है और प्रत्येक वेद के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षायें 'प्रातिशाख्य' नाम से अन्यान्य ऋषियों ने बनाई है।
२. व्याकरण ~~ वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिये, व्याकरण का मुख्य प्रयोजन है। प्राचीन काल में आठ प्रकार के व्याकरण थे। इनका पाणिनि ऋषि ने सारांश अपने अष्टाध्यायी व्याकरण में दिया है। इसके आरम्भ में भगवान् शङ्कर के डमरू से निकले १४ सूत्रों का वर्णन है। अष्टाध्यायी के सूत्रों पर कात्यायन ऋषि का वार्तिक है तथा पतञ्जलि ऋषि का महाभाष्य है। इन तीनों पर कैय्यट ऋषि ने विस्तार से टीका की है।
सूत्र, वार्तिक तथा भाष्य के लक्षण इस प्रकार से हैं~~
"अल्पाक्षरसन्दिग्धम् सारवद् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः।।"
जिसमें बहुत थोड़े अक्षर हों, किन्तु अर्थ सन्देह रहित हो, विश्वतोमुखी अर्थ (गागर में सागर भरा हुआ) सूत्र के विशेषज्ञों ने उसे सूत्र कहा है।
वार्तिक ~~ "उक्तानुक्त दुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते।
तं ग्रँथं वार्तिकं प्राहु: वार्तिकज्ञा: मनीषिणः।।"
मूल में कही हुई बात, न कही हुई बात तथा कठिन कही हुई बात की चिंता जहां होती है, वार्तिक के मर्म जानने वाले विद्वानों ने उसे वार्तिक कहा है।
भाष्य ~~ "सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यै: सूत्रानुकारिभि:।
स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदोविदुः।।"
सूत्रकार के वाक्यों के अनुसार जहां अर्थ किया जाता है तथा अपने द्वारा कहे शब्दों की व्याख्या की जाती है, भाष्य के जानने वाले विद्वानों ने उसे भाष्य कहा है।
३. निरुक्त ~~ शिक्षा, व्याकरण से वर्णों का शुद्ध उच्चारण होने पर भी वैदिक मंत्रों का अर्थ जानने की इच्छा से जो ग्रन्थ रचा जाता है, उसे निरुक्त कहते हैं। भगवान् यास्काचार्य ने १३ अध्यायों में निरुक्त की रचना की है। निरुक्त दो प्रकार का है= लौकिक निरुक्त, वैदिक निरुक्त ; दोनों रचना इन्ही की है। लौकिक निरुक्त में महाभारत, पुराण, रामायण आती है, वैदिक निरुक्त में वैदिक देवता, द्रव्यपदार्थ के पर्यायवाची शब्दों का निरूपण है, इसको वैदिक निघण्टु भी कहते हैं। यह ५ अध्यायों में है। यास्काचार्य के अतिरिक्त अमरकोष, मेदिनी कोष आदि भी निरुक्त के अंतर्गत ही आते हैं।
४. छन्द ~~ इसके कर्ता पिंगल ऋषि हैं। यह शास्त्र भी दो प्रकार का है -- लौकिक, वैदिक।
वैदिक छन्दों में गायत्री, उष्णिग्, अनुष्टुप्, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती आदि सात छन्द हैं। लौकिक छन्दों में शार्दूलविक्रीड़ित सृग्धरा, विराट् आदि अनेक छन्द हैं।
५. ज्योतिष ~~ वैदिक काल के काल ज्ञान के लिए ; गर्गाचार्यादि अनेक ऋषियों ने अनेक प्रकार से इस शास्त्र से सम्बंधित ग्रन्थ लिखें हैं।
६. कल्प ~~ शास्त्रीय गुणों के उपसंहार में वैदिक अनुष्ठान का क्रमानुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए कल्प-सूत्रों की रचना हुई है। चारों वेदों के भिन्न-भिन्न कल्पसूत्र हैं। अथर्ववेद से सम्बंधित के लिए बौधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन आदि के सूत्र हैं तथा सामवेदी प्रयोगों के लिए लाटायन-ब्रिहियायन आदि सूत्र हैं।
ये वेद के ६ अंग हुये। जैसे हमारे शरीर में मुख, नासिका, नेत्र, पैर, श्रोत्र आदि अंग हैं, वैसे ही व्याकरण भगवान् वेद का मुख, शिक्षा नासिका, निरुक्त चरण, छन्द श्रोत्र, कल्प हाथ, ज्योतिष नेत्र हैं।
~~~~ पूज्य गुरुदेव भगवान् प्रणीत "गुरुवंश पुराण" के सत्ययुग खण्ड के प्रथम परिच्छेद के चतुर्थ अध्याय के आधार पर
Sanskrit barakhadi
बाराखडी
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः
ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः
ग गा गि गी गु गू गे गै गो गौ गं गः
घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घः
ङ ङा ङि ङी ङु ङू ङे ङै ङो ङं ङः
च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं चः
छ छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छः
ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं जः
झ झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झः
ञ ञा ञि ञी ञु ञू ञे ञै ञो ञौ ञं ञः
ट टा टि टी टु टू टे टै टो टौ टं टः
ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठे ठै ठो ठौ ठं ठः
ड डा डि डी डु डू डे डै डो डौ डं डः
ढ ढा ढि ढी ढु ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढः
ण णा णि णी णु णू णे णै णो णौ णं णः
त ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं तः
थ था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं थः
द दा दि दी दु दू दे दै दो दौ दं दः
ध धा धि धी धु धू धे धै धो धौ धं धः
न ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं नः
प पा पि पी पु पू पे पै पो पौ पं पः
फ फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फः
ब बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं बः
भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भः
म मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं मः
य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं यः
र रा रि री रु रू रे रै रो रौ रं रः
ल ला लि ली लु लू ले लै लो लौ लं लः
व वा वि वी वु वू वे वै वो वौ वं वः
श शा शि शी शु शू शे शै शो शौ शं शः
ष षा षि षी षु षू षे षै षो षौ षं षः
स सा सि सी सु सू से सै सो सौ सं सः
ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ हं हः
ळ ळा ळि ळी ळु ळू ळि ळी ळे ळै ळो ळौ ळं ळः
क्ष क्षा क्षि क्षी क्षु क्षू क्षे क्षै क्षो क्षौ क्षं क्षः
Common roots in Sanskrit
Verbal Forms Of Some Commonplace Verbal Roots धातु,
Verbal Root धातु Meaning Verbal Forms
1 गम् To Go गच्छामि गच्छावः गच्छामः
गच्छसि गच्छथः गच्छथ
गच्छति गच्छतः गच्छन्ति
2 वद् To Say, To Speak वदामि वदावः वदामः
वदसि वदथः वदथ
वदति वदतः वदन्ति
3 आ + गम् To Come आगच्छामि आगच्छावः आगच्छामः
आगच्छसि आगच्छथः आगच्छथ
आगच्छति आगच्छतः आगच्छन्ति
4 प्रति + गम् To Go Towards, To Go Unto प्रतिगच्छामि प्रतिगच्छावः प्रतिगच्छामः
प्रतिगच्छसि प्रतिगच्छथः प्रतिगच्छथ
प्रतिगच्छति प्रतिगच्छतः प्रतिगच्छन्ति
5 प्रति + आ + गम् To Return प्रत्यागच्छामि प्रत्यागच्छावः प्रत्यागच्छामः
प्रत्यागच्छसि प्रत्यागच्छथः प्रत्यागच्छथ
प्रत्यागच्छति प्रत्यागच्छतः प्रत्यागच्छन्ति
6 कृ To Do करोमि कुर्वः कुर्मः
करोषि कुरुथः कुरुथ
करोति कुरुतः कुर्वन्ति
7 खाद् To Eat खादामि खादावः खादामः
खादसि खादथः खादथ
खादति खादतः खादन्ति
Verbal Root धातु Meaning Verbal Forms
1 गम् To Go गच्छामि गच्छावः गच्छामः
गच्छसि गच्छथः गच्छथ
गच्छति गच्छतः गच्छन्ति
2 वद् To Say, To Speak वदामि वदावः वदामः
वदसि वदथः वदथ
वदति वदतः वदन्ति
3 आ + गम् To Come आगच्छामि आगच्छावः आगच्छामः
आगच्छसि आगच्छथः आगच्छथ
आगच्छति आगच्छतः आगच्छन्ति
4 प्रति + गम् To Go Towards, To Go Unto प्रतिगच्छामि प्रतिगच्छावः प्रतिगच्छामः
प्रतिगच्छसि प्रतिगच्छथः प्रतिगच्छथ
प्रतिगच्छति प्रतिगच्छतः प्रतिगच्छन्ति
5 प्रति + आ + गम् To Return प्रत्यागच्छामि प्रत्यागच्छावः प्रत्यागच्छामः
प्रत्यागच्छसि प्रत्यागच्छथः प्रत्यागच्छथ
प्रत्यागच्छति प्रत्यागच्छतः प्रत्यागच्छन्ति
6 कृ To Do करोमि कुर्वः कुर्मः
करोषि कुरुथः कुरुथ
करोति कुरुतः कुर्वन्ति
7 खाद् To Eat खादामि खादावः खादामः
खादसि खादथः खादथ
खादति खादतः खादन्ति
Persons in Sanskrit
प्रथम पुरुष :--
पुल्लिंग ~~ स:, तौ, ते
( वह , वह दोनों , वे सब )
एषः , एतौ , एते
( यह , यह दोनों , ये सब )
स्त्रीलिंग ~~ सा , ते , ताः
( वह , वह दोनों , वे सब )
एषा , एते , एताः
( यह , यह दोनों , ये सब )
नपुंसकलिंग ~~ तत् , ते , तानि
( वह , वह दोनों , वे सब )
एतत् , एते , एतानि
( यह , यह दोनों , ये सब )
मध्यम पुरुष :--
त्वम् , युवाम् , यूयम्
( तुम , तुम दोनों, तुम सब )
उत्तम पुरुष :--
अहम् , आवाम् , वयम्
( मैं, हम दोनों, हम सब )
Short forms in Sanskrit
संस्कृतस्य प्रत्याहाराः
१. अण्।
२. अक्, इक्, उक्।
३. एङ्।
४. अच्, इच्, एच्, ऐच्।
५. अट्।
६. अण्, इण्, यण्।
७. अम्, यम्, ङम्।
८. यञ्।
९. झष्, भष्।
१०. अश्, हश्, वश्, जश्, बश्।
११. छव्।
१२. यय्, मय्, झय्, खय्, चय्।
१३. यर्, झर्, खर्, चर्, शर्।
१४. अल्, हल्, वल्, रल्, झल्, शल्।
वर्णमालायां
===============================
संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।
ॐ .... संस्कृत से संबंधित प्राथमिक ज्ञान...
> संस्कृत वणॅमाला मे ६३ वणॅ होते है।
२२ स्वर , ३३ व्यञ्जन और ८ अयोगवाह ...... होते है ।
स्वर :- ( कुल सङ्ख्या = २२ )
***************
> स्वर को बोलते समय किसी अन्य वणॅ की सहायता नही लेनी पडती ।
स्वर तीन प्रकार के हैं –
***************
१. हस्व या लघु स्वर - अ, इ, उ, ऋ, लृ ..... ( ५ )
२. दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ॠ , ए, ऐ, ओ, औ ..... ( ८ )
३. प्लुत स्वर – अ३, इ३, उ३, ऋ३, लृ३, ए३, ऐ३, ओ३, औ३ ..... ( ९ )
व्यञ्जन :- ( कुल सङ्ख्या = ३३ )
***************
> " व्यञ्जन " को बोलते समय किसी भी " एक स्वर " की सहायता लेनी पडती है ।
जैसे - ग - ग् + अ , क - क् + अ
> व्यञ्जन तीन प्रकार के होते हैं और पाँच प्रकार के वगॅ होते है ।
प्रकार : -
***************
१. स्पर्श व्यञ्जन ;
२. अन्तस्थ: व्यञ्जन ;
३. उष्म व्यञ्जन
वर्ग : -
***************
क , च , ट , त , प वगॅ
१. स्पर्श व्यञ्जन –
***************
क वर्ग -- क् ख् ग् घ् ङ्
च वर्ग -- च् छ् ज् झ् ञ्
ट वर्ग -- ट् ठ् ड् ढ् ण्
त वर्ग -- त् थ् द् ध् न्
प वर्ग -- प् फ् ब् भ् म्
२. अन्त्स्थः व्यञ्जन –
***************
य् र् ल् व्
३. उष्म व्यञ्जन –
***************
श् ष् स् ह्
नरम व्यंजन अर्थात् अल्पप्राण वर्ण हैँ - कचटतप ,गजडदब ,ङञणनम ।
कठिन व्यंजन अर्थात् महाप्राण वर्ण हैँ - खछठथफ , घझढधभ , शषसह ।
> " व्यञ्जन " के अंत मे जो भी " स्वर " आता है उसे उस " स्वर का कारांत " कहते है जैसे --
( ०१ ) गति - ग् + अ + त् + इ ( इकारांत )
( ०२ ) मातृ - म् + आ + त् + ऋ ( ऋकारांत )
( ०३ ) कमल - क् + अ + म् + अ + ल् + अ ( अकारांत )
> व्यञ्जन को बोलते समय मुँह के पाँच भागो का प्रयोग होता है ।
१) कण्ठस्थ २) तालव्य ३) मुधॅन्य ४) दन्तस्थ ५) ओष्ठस्थ
> अयोगवाह :– ( कुल सङ्ख्या = ०८ )
***************
( ०१ ) अनुस्वार - अं ( ं ) ,
( ०२ ) विसर्ग - अ: ( : )
( ०३ ) अनुनासिक
( ०४ ) जिह्वामूलीय
( ०५ ) उपध्मानीय
( ०६ ) ह्रस्व
( ०७ ) दीर्घ
( ०८ ) ळ
> विशेष वणॅ –
***************
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
" पठ " धातु के रूप सीखे और इसी तरह अन्य धातु के रूप लिखे .... जैसे .....
लिख - लिखना,
खाद - खाना,
वद - बोलना,
पश्य - देखना,
उपविश - बैठना इत्यादि ......
हर दिन अभ्यास करे और संस्कृत मे लिखना शुरू करे.... शुरू मे कठिन लगेगा पर धीरे धीरे बहुत आसान लगेगा ... रटने की कोई जरूरत नहीं.... लिखने और बोलने मे संस्कृत का प्रयोग आज से शुरू कर दो ...
*******************
आओ मिलकर नया सुनहरा, स्वच्छ, सुंदर, स्वर्णिम भारत का निर्माण करे......
ॐ शांति || जय संस्कृत || जय संस्कृतस्य संरक्षणम्
Tenses in Sanskrit
संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं।
•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है
इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।
•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और
~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे –
••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,
•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )
~~~~ जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।
(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
~~~~ जैसे :--
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।
(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :--
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।
(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :---
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।
(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )
(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;
• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?
(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
~~~~ जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।
(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
~~~~ जैसे :-
• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।
(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।
~~~~ जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।
(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
~~~~ जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥
अर्थात्
~ लट् लकार वर्तमान काल में,
~ लेट् लकार केवल वेद में,
~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,
~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा
~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
**************************
लकारों के नाम याद रखने की विधि-
**************************
" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें
और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
जैसे
•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्
•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥
इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।
अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।
•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है
इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।
•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और
~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे –
••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,
•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )
~~~~ जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।
(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
~~~~ जैसे :--
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।
(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :--
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।
(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :---
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।
(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )
(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;
• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?
(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
~~~~ जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।
(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
~~~~ जैसे :-
• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।
(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।
~~~~ जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।
(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
~~~~ जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥
अर्थात्
~ लट् लकार वर्तमान काल में,
~ लेट् लकार केवल वेद में,
~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,
~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा
~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
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लकारों के नाम याद रखने की विधि-
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" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें
और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
जैसे
•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्
•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥
इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।
अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।
Roots structure in Sanskrit
धातुओं का वर्गीकरण (भेद): धातु-विभाग
संस्कृत की सभी धातुओं को 10 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक भाग का नाम "गण (Conjugation) है।
Dhatu Roop List
भ्वादिगण
अदादिगण
ह्वादिगण (जुहोत्यादि)
दिवादिगण
स्वादिगण
तुदादिगण
तनादिगण
रूधादिगण
क्रयादिगण
चुरादिगण
1. भ्वादिगण (प्रथम गण - First Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् - इन चार लकारों में भ्वादिगी धातु के उत्तर में 'अ' होता है। 'अ' अंतिम वर्ण मे सदा युक्त होता है। लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् लकार में निम्न धातुओं में भ्वादिगणीय परिवर्तन होते हैं -
दृश् - पश्य, शद् - शीय, घ्रा - जिघ्र, इष् - इच्छ, दाण - यच्छ, ऋ - ऋच्छ, सद् - सीद्, गम् - गच्छ, ध्मा - धम्,
स्था - तिष्ठ, सृ - धौ, पा - पिव्, यम - यच्छ, म्ना - मन आदि।
भ्वादिगण की प्रमुख धातुएँ
भू-भव् (होना, to be)
गम्-गच्छ (जाना, to go)
पठ् धातु (पढना, to read)
दृश् (देखना, to see)
पा-पिव् (पीना, to drink)
जि (जीतना, to win)
घ्रा-जिघ्र (सूँघना, to smell)
पत् (गिरना, to fall)
वस् (रहना/निवास करना, to dwell)
वद् (बोलना, to speak)
स्था-तिष्ठ (ठहरना/प्रतीक्षा करना, to stay / to wait)
जि-जय् (जीतना, to conquer)
क्रम्-क्राम् (चलना, to pace)
सद्-सीद् (दु:ख पाना, to be sad)
ष्ठिव्-ष्ठीव् (थूकना, to spit)
दाण-यच्छ (देना, to give)
लभ् (प्राप्त करना, to obtain)
वृत् (वर्तमान रहना, to be / to exist)
सेव् (सेवा करना, to nurse/ to worship)
स्वनज् (आलिङ्गन् करना, to embrace)
धाव् (उभयपदी) (दौडना /साफ़ करना, to run / to clean)
गुह् (उभयपदी) (छिपाना, to hide)
2. अदादिगण (द्वितीय गण - Second Conjugation)
अदादिगण में गण चिह्न कुछ भी नहीं रहता है। धातु का अत्यंक्षर विभक्ति से मिल जाता है। जैसे -
अद् + ति = अत्ति।
लट् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को, लोट् लकार के प्रथम पुरुष के एकवचन को और उत्तम पुरुष के तीनों वचनों को तथा लङ्ग् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को छोड़कर शेष विभक्तियों में 'अस्' धातु के अकार का लोप हो जाता है। जैसे -
अस्ति ⇒ स्त: ⇒ सन्ति
विधिलिंग की सभी विभक्तियों में अकार का लोप हो जाता है। जैसे-
स्यात् ⇒ स्याताम् ⇒ स्यु:
'अस्' धातु के लोट् लकार के मध्यमपुरुष एकवचन में एधि, हन् धातु के लोट् मध्यमपुरुष एकवचन में जहि और शास् धातु के लोट् मध्यमपुरुष एकवचन में शाधि रूप हो जाते है।
'अस्' धातु लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् को छोड़कर अन्य लकारों में 'भू' हो जाता है और 'भू' धातु की ही तरह 'अस्' धातु रूप होते है।
'हन्' धातु के लट्, लोट् और लङ्ग् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन में 'घ्नन्तु' हो जाता है। जैसे -
हन् + लट् + अन्ति = घ्नन्ति
हन् + लोट् + अन्तु = घ्नन्तु
हन् + लङ्ग् + अन् = अघ्नम्
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ए, आवहै, द्, स्, और अम् विभक्तियों में अदादिगणीय धातुओं के अन्त्य स्वर और आधा लघु स्वर का गुण होता है।
अदादिगण की प्रमुख धातुएं
अद् (भोजन करना, to eat)
अस् (होना, to be)
हन् (मारना, to kill)
विद् (जानना, to know)
या (जाना, to go)
रुद् (रोना, to weep)
जागृ (जागना, to wake)
इ (आना, to come)
आस् (वैठना, to sit / stay)
शी (सोना, to sleep)
द्विष् (द्वेष करना, to hate) उभयपदी
ब्रू (बोलना, to speak) उभयपदी
दुह् (दूहना, to milk) उभयपदी
3. ह्वादिगण (जुहोत्यादि) (तृतीय गण - Third Conjugation)
ह्वादिगण में चिन्ह नहीं लगता। इसमें धातुओं के पहले अक्षर का द्वित्व हो जाता है। द्वित्व होने पर प्रथमाक्षर में यदि दीर्घ स्वर रहे तो वह ह्रस्व हो जाता है और वर्ग का दूसरा वर्ण अपने वर्ग के प्रथम वर्ण में बदल जायेगा। चौथा वर्ण तीसरे वर्ण में बदल जायेगा। इसी तरह क-वर्ग, च-वर्ग में और हकार, च-वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जायेगा।
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - इन चारों में ह्वादिगणीय धातु अभ्यस्त होते है और लिट् में अभ्यस्त धातु के पूर्व भाग के जो सब कार्य निर्दिष्ट हुए हैं, वे सब ही होते हैं।
ति, सि, मि, अति, तु, आव, आम, ऐ, आवहै, द्, स्, अम् - इनमें ह्वादिगणीय धातु के अन्त्य स्वर उपधा लघु स्वर का गुण हो जाता है।
सबल (Strong) विभक्तियों में धातु के अंतिम स्वर का गुण होता है।
लट् और लोट् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन (Third Person Plural) (अन्ति और अन्तु) विभक्ति के नकार का लोप हो जाता है।
'भी' धातु के रूप दुर्बल (Weak) विभक्तियों में विकल्प से ह्रस्व भी होते हैं। जैसे - विभित: और विभीत: दोनों।
लङ्ग् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन (Third Person Plural) में 'अन्' के स्थान पर 'उस्' होता है और धातु के अन्तिम स्वर का गुण हो जाता है।
ह्वादिगण की प्रमुख धातुएं
हु (हवन करना, to sacrifice)
भी (डरना, to be afraid)
दा (देना, to give) उभयपदी
विज् - उभयपदी
4. दिवादिगण (चतुर्थ गण - Fourth Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - इनमे दिवादिगणीय धातुओं के उत्तर "य" होता है। यही "य" इस गण का चिन्ह है।
दिव्, सिव्, और ष्ठिव् धातुओं के इलावा इकार का दीर्घ हो जाता है। जैसे- दिव्यति-सीव्यति-ष्ठीव्यति इत्यादि।
दिवादिगण की प्रमुख धातुएं
दिव् (क्रीडा करना, to play)
सिव् (सीना, to sew)
नृत् (नाचना, to dance)
नश् (नाश होना, to perish, to be lost)
जन् (उत्पन्न होना, to be born, to grow)
शम् (शान्त होना, to be calm, to stop)
सो (नाश करना, to destroy)
विद् (रहना, to exist) - उभयपदी
5. स्वादिगण (पञ्चम् गण - Fifth Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - इनमें स्वादिगणीय धातु के आगे 'नु' का आगम होता है। यही 'नु' गणचिन्ह होता है।
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, द्, स्, अम् - इन कई एक सबल विभक्तियों में 'नु' के उकार का गुण 'नो' हो जाता है।
यदि 'नु' का 'उ' दूसरे अक्षर से संयुक्त ना हो तो लोट लकार के मध्यम पुरुष एकवचन की विभक्ति 'हि' का लोप हो जाता है, परन्तु संयुक्त अक्षर होने पर ऐसा नहीं होता है। जैसे -
सुनु + हि = सुनु ('हि' का लोप )
आप्नु + हि = आप्नुहि
उत्तम पुरुष के द्विवचन और वहुवचन में 'व' और 'म' दूर रहने से 'नु' के उकार का लोप भी होता है। जैसे -
सुनु + व: = सुन्व: / सुनव:
सुनु + म: = सुन्म: / सुनुम:
स्वादिगण की प्रमुख धातुएं
सु (स्नान करना, to bathe) - उभयपदी
श्रु (सुनना, to hear)
आप् (प्राप्त करना, to obtain)
6. तुदादिगण (षष्ठं गण - Sixth Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - में धातुओं के साथ 'अ' जोड़ दिया जाता है।
भ्वादिगण और तुदादिगण दोनों का गण चिन्ह 'अ' होता है। इन दोनों में भेद इतना ही है कि भ्वादिगण में धातु के अंतिम स्वर और उपधा लघु स्वर का गुण होता है।
तुदादिगण में गुण नहीं होता है। जैसे -
तुद् + अ = तुदति (तोदति गलत है )
मुच्, सिच्, क्रत्, विद्, लिप्, और लुप् धातुओं के उपधा में 'न्' जोड दिया जाता है। जैसे -
मुच् + अ + ति = मुञ्चति
सिच् +अ + ति = सिञ्चति
तुदादिगण की प्रमुख धातुएं
तुद् (पीडा देना, to oppress)
स्पृश (छूना, to touch)
इष् (इच्छा करना, to wish)
प्रच्छ् (पूछना, to ask)
मृ (मरना , to die)
मुच् (छोडना, to leave) उभयपदी
7. तनादिगण (सप्तम् गण - Seventh Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - इनमें धातुओं के आगे 'उ' आता है और 'उ' अन्त्य वर्ण में मिल जाता है।
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, त्, स्, और अम् - इनके परे 'उ' के स्थान में 'औ' हो जाता है।
सबल विभक्तियों में उकार का गुण हो जाता है और निर्बल में ऐसा नहीं होता है।
लोट् लकार के मध्यम पुरुष के एकवचन में 'हि' विभक्ति का लोप हो जाया करता है।
तनादिगण की प्रमुख धातुएं
तन् (फ़ैलाना, to spread) - उभयपदी
कृ (करना, to do) - उभयपदी
8. रूधादिगण (अष्टं गण - Eighth Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - इनमें धातुओं के अन्त्य स्वर के परे एक 'न' का आगम हो जाता है।
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, द्, स्, और अम् - इन धातुओं में 'नकार' के परे 'अकार' का लोप हो जाता है।
रुधाधिगण की प्रमुख धातुएं
भुज् (भोजन करना, to eat - आत्मेनपदी), (रक्षा करना, to protect - परस्मैपद) - उभयपदी
छिद्र (काटना, to cut) - उभयपदी
भिद् (काटना, to break down, to separate) - उभयपदी
9. क्रयादिगण (नवम् गण - Ninth Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - में 'ना' की आवृति होती है।
ति, सि, मि, तु, त्, स् के भिन्न रहने पर 'ना' के स्थान पर 'नी' हो जाता है।
लोट् लकार के मध्यम पुरुष एकवचन में यति व्यञ्जनान्त धातु हो तो 'ना' के स्थान पर 'आन' होता है और 'हि' का लोप हो जाता है ।
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - चारो लकारों में क्रयादिगणीय धातु का अंत स्थित दीर्घ ऊकार का उकार हो जाता है ।
लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् - चारो लकारों में ग्रह और ज्ञा के स्थान पर जा हो जाता है।
क्रयादिगण की प्रमुख धातुएं
क्री (खरीदना, to buy) - उभयपदी
ज्ञा (जानना, to know)
पू (पवित्र करना, to purify) - उभयपदी
10. चुरादिगण (दशम् गण - Tenth Conjugation)
इस गण के धातु के अंत में 'णिच्' (इ) जोडा जाता है और धातु के अन्तिम स्वर एवं उपधा अकार की व्रध्दि होती है।
यदि उपधा में कोई ह्रस्व स्वर रहता है तो उसका गुण हो जाता है।
परन्तु 'कथ्' गण, प्रथ, रच्, स्प्रह आदि में उपधा आकार की वृध्दि नहीं होती।
उपर्युक्त धातुओं के अंत में अकार होता है- जिसका लोप कर दिया जाता है।
इस गण के सभी धातु इकारान्त हो जाता है।
चुरादिगण की प्रमुख धातुएं
चुर (चुराना, to steal, to rob) - उभयपदी
कथ् (कहना, to say, to tell) - उभयपदी
चिन्त (सोचना, to think)
माहेश्वरसूत्राणि
१.अ इ उ ण् ।
२. ऋ ऌ क् ।
३.ए ओ ङ् ।
४.ऐ औ च् ।
५. ह य व र ट् ।
६. ल ण् ।
७. ञ म ङ ण न म् ।
८. झ भ ञ् ।
९. घ ढ ध ष् ।
१०.ज ब ग ड द श् ।
११.ख फ छ ठ थ च ट त व् ।
१२. क प य् |
१३.श ष स र् ।
१४.ह ल् ।
ये १४ सूत्र माहेश्वर सूत्र कहलाते है। इनसे अण् आदि प्रत्याहार संज्ञाएँ बनती है। ये संज्ञाएँ आचार्यः पाणिनि के व्याकरण मे सर्वत्र प्रयुक्त है। इन सूत्रों मे अंतिम वर्ण अनुबन्ध कहलाता है जिसकी इत्संज्ञा होती है। इत्संज्ञा का प्रयोजन उसका लोप करना है। हकारादि व्यंजन 'अ' स्वरयुक्त पढ़े गए है क्योंकि व्यंजनों का प्रयोग स्वरों की सहायता के बिना नही हो सकता। परंतु लण् सूत्र में ल् के साथ आने वाला अकार इत्संज्ञक है।
Computer words in Sanskrit
संगणक-विषयक-शब्दावली
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(18) Smart phone - कुशलदूरवाणी
(19)Tag - चिह्नम्
(20)Setup – प्रतिष्ठितम्
(21)Install - प्रस्थापना / प्रतिस्थापनम्
(22)Privacy - गोपनीयता
(23)Manual – हस्तक्रिया
(24)Accessibility - अभिगम्यता
(25)Error – त्रुटि:
(26)Pass word – गूढशब्द:
(27) Code no. - कूटसंख्या
(28) Pen drive - स्मृतिशलाका

(1.) क्लास रूमः--कक्ष्या
(2.) बेंच (पुस्तक रखने की)---दीर्घोत्पीठिका,
(3.) बेंच (बैठने की)---दीर्घपीठिका,
(4.) मेज---उत्पीठिका,
(5.) कुर्सीः--आसन्दः,
(6.) बैगः--स्यूतः,
(7.) किताब--पुस्तकम्,
(8.) कलम--लेखनी (कलमः),
(9.) लडकी--बाला या बालिका,
(10.) लडका--बालः,
(11.) छाता---छत्रम्,
(12.) टीचर (पुरुष)---शिक्षकः,
(13.) टीचर (लेडी) शिक्षिका,
(14.) अलमारी--काष्ठमञ्जूषा,
(15.) आरामकुर्सी---सुखासन्दिका,
(16.) इंक पेंसिल, डॉट पेन--मसितूलिका,
(17.) शूज--उपानह्,
(18.) ड्रेस---परिधानम्,
(19.) ओढनी--प्रच्छदपटः,
(20.) ओवरकोट---बृहतिका,
(21.) कंघी---प्रसाधनी,
(22.) कक्षा का साथी---सतीर्थ्यः, सहपाठी,
(23.) कमरा---कक्षः,
(24.) खिडकी---गवाक्षः,
(25.) पंखा---व्यजनम्,
(26.) एसी---वातायनम्,
(27.) डेस्टर--मार्जकः,
(28.) इन्स्पेक्टर---निरीक्षकः,
(29.) कम्प्यूटर---संगणकः,
(30.) कागज---कर्गदः, (कागदः) (कर्गलम्)
(31.) रिफिल---मसियष्टिः,
(32.) कॉपी---सञ्चिका,
(33.) रजिस्टर---पञ्जिका,
(34.) कार्टुन--उपहासचित्रम्,
(35.) ड्रॉइंग---रेखाचित्रम्,
(36.) कॉलेज--महाविद्यालयः,
(37.) स्कूल---विद्यालयः,
(38.) यूनीवर्सिटी--विश्वविद्यालयः,
(39.) किवाड--कपाटम्,
(40.) गेट--द्वारम्,
(41.) मेन गेट---मुख्यद्वारम्,
(42.) दीवार---भित्तिका,
(43.) दीवारघडी---भित्तिघटिका,
(44.) घडी---घटिका,
(45.) दवात का ढक्कन--कुप्पी,
(46.) कुर्ता--कञ्चुकः,
(47.) कैंची---कर्तरी,
(48.) कोठरी---लघुकक्षः,
(49.) गेटकीपर--द्वारपालः,
(50.) पिअन--सेवकः,
(51.) क्लर्क--लिपिकारः, करणिकः,
(52.) मैदान---क्षेत्रम्,
(53.) खेल का मैदान--क्रीडाक्षेत्रम्,
(54.) स्पोर्ट्स--क्रीडा,
(55.) गेन्द---कन्दुकः,गेन्दुकम्,
(56.) फुटबॉल---पादकन्दुकम्,
(57.) घण्टा--होरा,
(58.) चपरासी---लेखहारकः, प्रेष्यः,
(59.) चप्पल---पादुका, पादुुः,
(60.) चॉक--कठिनी,
(61.) चांसलर--कुलपतिः,
(62.) चारों ओर मुडने वाली कुर्सी---पर्पः,
(63.) रंग---वर्णः,
(64.) चिह्न-अंकः,
(65.) चोटी---शिखा. सानुः,
(66.) रिसिस---जलपानवेला,
(67.) जिल्द--प्रावरणम्,
(68.) झाडू--मार्जनी,
(69.) टाइम टेबल--समय-सारणी,
(70.) कैरीकुलम्---पाठ्यक्रमः,
(71.) टेनिस का खेल--प्रक्षिप्तकन्दुकक्रीडा,
(72.) एजुकेशन टाइरेक्टर---शिक्षासञ्चालकः,
(73.) डिप्टी डाइरेक्टर (शिक्षा)--उपशिक्षासञ्चालकः,
(74.) डेस्क--लेखनपीठम्,
(75.) ड्रॉइंग रूप---उपवेशगृहम्,
(76.) दरी--आस्तरणम्,
(77.) दस्ता (कागज का)--दस्तकः,
(78.) निब---लेखनीमुखम्,
(79.) नेट --जालम्,
(80.) नेलकटर---नखनिकृन्तनम्,
(81.) नेलपॉलिश--नखरञ्जनम्,
(82.) पायजामा--पादयामः,
(83.) पॉलिश---पादुरञ्जनम्, पादुरञ्जकः,
(84.) पेंसिल--तूलिका,
(85.) पैण्ट--आप्रपदीनम्,
(86.) पोर्टिको (बरामदा)---प्रकोष्ठः,
(87.) प्रिंसिपल---(पु.) प्रधानाचार्यः, प्रधानाध्यापकः प्राचार्यः,
(स्त्री) प्रधानाचार्या, प्रधानाध्यापिका, प्राचार्या,
(88.) प्रोफेसर--प्राध्यापकः,
(89.) फर्श---कुट्टिमम्,
(90.) फाउण्टेन पेन---धारालेखनी,
(91.) फाइल--पत्रसञ्चयिनी,
(92.) फीस--शुल्कः,
(93.) बरामदा--वरण्डः,
(94.) बाथरूम---स्नानागारः,
(95.) बेंच--काष्ठासनम्,
(96.) बैंड---वादित्रगणः,
(97.) बैडमिण्टन---पत्रिक्रीडा,
(98.) मेज--फलकम्,
(99.) पढाई की मेज--लेखनफलकम्,
(100.) यूनिफॉर्म---एकपरिधानम्, एकवेशः, गणवेशः
(1)ID.— परिचयपत्रम्
(2)Data – टंकितांश:
(3) Edit – सम्पादनम्
(4)Keyboard – कुंचिपटलम्
(5) Timeline – समयरेखा
(6) Login – प्रवेश:
(7)Share - वितरणम्, प्रसारणम्
(8) Laptop – अंकसंगणकम्
(9) Search - अन्वेषणम्
(10)Default - पूर्वनिविष्ठम्
(11)Input – निवेश:
(12)Output - फलितम्
(13)Block – अवरोध:
(14)Display – प्रदर्शनम् / विन्यास:
(15)Wallpaper - भीत्तिचित्रम्
(16)Theme – विषयवस्तु:
(17)User – उपभोक्ता
(18) Smart phone - कुशलदूरवाणी
(19)Tag - चिह्नम्
(20)Setup – प्रतिष्ठितम्
(21)Install - प्रस्थापना / प्रतिस्थापनम्
(22)Privacy - गोपनीयता
(23)Manual – हस्तक्रिया
(24)Accessibility - अभिगम्यता
(25)Error – त्रुटि:
(26)Pass word – गूढशब्द:
(27) Code no. - कूटसंख्या
(28) Pen drive - स्मृतिशलाका

(1.) क्लास रूमः--कक्ष्या
(2.) बेंच (पुस्तक रखने की)---दीर्घोत्पीठिका,
(3.) बेंच (बैठने की)---दीर्घपीठिका,
(4.) मेज---उत्पीठिका,
(5.) कुर्सीः--आसन्दः,
(6.) बैगः--स्यूतः,
(7.) किताब--पुस्तकम्,
(8.) कलम--लेखनी (कलमः),
(9.) लडकी--बाला या बालिका,
(10.) लडका--बालः,
(11.) छाता---छत्रम्,
(12.) टीचर (पुरुष)---शिक्षकः,
(13.) टीचर (लेडी) शिक्षिका,
(14.) अलमारी--काष्ठमञ्जूषा,
(15.) आरामकुर्सी---सुखासन्दिका,
(16.) इंक पेंसिल, डॉट पेन--मसितूलिका,
(17.) शूज--उपानह्,
(18.) ड्रेस---परिधानम्,
(19.) ओढनी--प्रच्छदपटः,
(20.) ओवरकोट---बृहतिका,
(21.) कंघी---प्रसाधनी,
(22.) कक्षा का साथी---सतीर्थ्यः, सहपाठी,
(23.) कमरा---कक्षः,
(24.) खिडकी---गवाक्षः,
(25.) पंखा---व्यजनम्,
(26.) एसी---वातायनम्,
(27.) डेस्टर--मार्जकः,
(28.) इन्स्पेक्टर---निरीक्षकः,
(29.) कम्प्यूटर---संगणकः,
(30.) कागज---कर्गदः, (कागदः) (कर्गलम्)
(31.) रिफिल---मसियष्टिः,
(32.) कॉपी---सञ्चिका,
(33.) रजिस्टर---पञ्जिका,
(34.) कार्टुन--उपहासचित्रम्,
(35.) ड्रॉइंग---रेखाचित्रम्,
(36.) कॉलेज--महाविद्यालयः,
(37.) स्कूल---विद्यालयः,
(38.) यूनीवर्सिटी--विश्वविद्यालयः,
(39.) किवाड--कपाटम्,
(40.) गेट--द्वारम्,
(41.) मेन गेट---मुख्यद्वारम्,
(42.) दीवार---भित्तिका,
(43.) दीवारघडी---भित्तिघटिका,
(44.) घडी---घटिका,
(45.) दवात का ढक्कन--कुप्पी,
(46.) कुर्ता--कञ्चुकः,
(47.) कैंची---कर्तरी,
(48.) कोठरी---लघुकक्षः,
(49.) गेटकीपर--द्वारपालः,
(50.) पिअन--सेवकः,
(51.) क्लर्क--लिपिकारः, करणिकः,
(52.) मैदान---क्षेत्रम्,
(53.) खेल का मैदान--क्रीडाक्षेत्रम्,
(54.) स्पोर्ट्स--क्रीडा,
(55.) गेन्द---कन्दुकः,गेन्दुकम्,
(56.) फुटबॉल---पादकन्दुकम्,
(57.) घण्टा--होरा,
(58.) चपरासी---लेखहारकः, प्रेष्यः,
(59.) चप्पल---पादुका, पादुुः,
(60.) चॉक--कठिनी,
(61.) चांसलर--कुलपतिः,
(62.) चारों ओर मुडने वाली कुर्सी---पर्पः,
(63.) रंग---वर्णः,
(64.) चिह्न-अंकः,
(65.) चोटी---शिखा. सानुः,
(66.) रिसिस---जलपानवेला,
(67.) जिल्द--प्रावरणम्,
(68.) झाडू--मार्जनी,
(69.) टाइम टेबल--समय-सारणी,
(70.) कैरीकुलम्---पाठ्यक्रमः,
(71.) टेनिस का खेल--प्रक्षिप्तकन्दुकक्रीडा,
(72.) एजुकेशन टाइरेक्टर---शिक्षासञ्चालकः,
(73.) डिप्टी डाइरेक्टर (शिक्षा)--उपशिक्षासञ्चालकः,
(74.) डेस्क--लेखनपीठम्,
(75.) ड्रॉइंग रूप---उपवेशगृहम्,
(76.) दरी--आस्तरणम्,
(77.) दस्ता (कागज का)--दस्तकः,
(78.) निब---लेखनीमुखम्,
(79.) नेट --जालम्,
(80.) नेलकटर---नखनिकृन्तनम्,
(81.) नेलपॉलिश--नखरञ्जनम्,
(82.) पायजामा--पादयामः,
(83.) पॉलिश---पादुरञ्जनम्, पादुरञ्जकः,
(84.) पेंसिल--तूलिका,
(85.) पैण्ट--आप्रपदीनम्,
(86.) पोर्टिको (बरामदा)---प्रकोष्ठः,
(87.) प्रिंसिपल---(पु.) प्रधानाचार्यः, प्रधानाध्यापकः प्राचार्यः,
(स्त्री) प्रधानाचार्या, प्रधानाध्यापिका, प्राचार्या,
(88.) प्रोफेसर--प्राध्यापकः,
(89.) फर्श---कुट्टिमम्,
(90.) फाउण्टेन पेन---धारालेखनी,
(91.) फाइल--पत्रसञ्चयिनी,
(92.) फीस--शुल्कः,
(93.) बरामदा--वरण्डः,
(94.) बाथरूम---स्नानागारः,
(95.) बेंच--काष्ठासनम्,
(96.) बैंड---वादित्रगणः,
(97.) बैडमिण्टन---पत्रिक्रीडा,
(98.) मेज--फलकम्,
(99.) पढाई की मेज--लेखनफलकम्,
(100.) यूनिफॉर्म---एकपरिधानम्, एकवेशः, गणवेशः
Monday, July 22, 2019
Sanskrit Word List
Sanskrit Word List
The purpose of this list is to give a rough idea of the Sanskrit language. The words listed below are not the most common words, but a broad sampling of words. These are transliterated words. Means Sanskrit words in Roman script. Transliteration is I. A. S. T. (International Alphabets for Sanskrit Transliteration)Sanskrit.
English
Sanskrit
संस्कृतम् (saṃskṛtam)
I
अहम् (ahám)
you (singular)
त्वम् (tvám)
he
स (sá)
we
वयम् (vayám)
you (plural)
यूयम् (yūyám)
they
ते (té)
this
इदम् (idám)
that
तत् (tát)
here
अत्र (átra)
there
तत्र (tátra)
who
क (ká)
what
किम् (kím)
where
कुत्र (kútra)
when
कदा (kadā́)
how
कथम् (kathám)
not
न (ná)
all
सर्व (sárva)
many
बहु (bahú)
some
किञ्चिद् (kíñcid)
few
अल्प (álpa)
other
अन्य (anyá)
one
एक (éka)
two
द्वि (dví)
three
त्रि (trí)
four
चतुर् (cátur)
five
पञ्ज (páñcan)
big
महत् (mahát)
long
दीर्घ (dīrghá)
wide
उरु (urú)
thick
घन (ghaná)
heavy
गुरु (gurú)
small
अल्प (álpa)
short
ह्रस्व (hrasvá)
narrow
अंहु (aṃhú)
thin
तनु (tanú)
woman
स्त्री (strī́)
man (adult male)
पुरुष (púruṣa), नर (nára)
man (human being)
मनुष्य (manuṣyá)
child
बाल (bā́la), शिशु (śíśu)
wife
भार्या॑ (bhāryā́)
husband
पति (páti)
mother
मातृ (mā́tṛ)
father
पितृ (pitṛ́)
animal
पशु (páśu)
fish
मत्स्य (mátsya)
bird
वि (ví)
dog
श्वानः (śvánah)
louse
यूका (yūkā)
snake
सर्प (sarpá)
worm
कृमि (kṛmi)
tree
वृक्ष (vrkṣá)
forest
वन (vána)
stick
दण्ड (daṇḍá)
fruit
फल (phála)
seed
भीज (bī́ja)
leaf
पत्त्र (páttra)
root
मूल (mū́la)
bark (of a tree)
त्वच् (tvác)
flower
पुष्प (púṣpa)
grass
तृण (tṛṇa)
rope
रज्जु (rájju)
skin
चर्मन् (cárman)
meat
मांस (māṃsá)
blood
असृज् (ásṛj)
bone
अस्थि (ásthi)
fat (noun)
पीवस् (pī́vas), मेदस् (médas)
egg
अण्ड (aṇḍa)
horn
शृङ्ग (ṡṛṅgá)
tail
पुच्छ (púccha)
feather
पर्ण (parṇá)
hair
केश (kéśa)
head
शिरस् (śíras)
ear
कर्ण (kárṇa)
eye
अक्षि (ákṣi)
nose
नासिक (nā́sika)
mouth
मुख (múkha)
tooth
दत्/दन्त (dát/dánta)
tongue (organ)
जिह्व/जिह्वा (jihvá/jihvā́)
fingernail
नख (nakhá)
foot
पद (padá)
leg
जङ्घ (jáṅgha)
knee
जानु (jā́nu)
hand
हस्त (hásta), पाणि (pāṇí)
wing
पक्ष (pakṣá)
belly
उदर (udára)
guts
गुद (gudá)
neck
कण्ठ (kaṇṭhá)
back
पृष्ठ (pṛṣṭhá)
breast
स्तन (stána)
heart
हृद् (hṛd), हृदय (hṛdaya)
liver
यकृत् (yákṛt)
to drink
पा – पिबति (pā – píbati)
to eat
अद् – अत्ति (ad – átti)
to bite
दंश् – दंशति (daṃś – dáṃśati)
to suck
धे – धयति (dhe – dháyati)
to spit
ष्ठिव् – ष्ठिवति/ष्ठीव्यति (ṣṭiv – ṣṭívati/ṣṭhī́vyati)
to vomit
वम् – वमति (vam – vámati)
to blow
वा – वाति (vā – vā́ti)
to breathe
अन् – अनिति (an- ániti)
to laugh
स्मि – स्मयते (smi – smáyate), हस्- हसति (has – hásati)
to see
पश्- पश्यति (paś – páśyati; only in the present system), दृश् (dṛś;
everywhere else)
to hear
श्रु- शृणोति (śru – śṛṇóti)
to know
ज्ञा- जानाति (jñā – jānā́ti)
to think
मन्- मनुते (man – manuté), चिन्त् – चिन्तयति (cint – cintayati)
to smell
घ्रा- जिघ्रति (ghrā – jíghrati)
to fear
भी – बिभेति (bhī – bibhéti)
to sleep
स्वप्- स्वपिति (svap – svápiti)
to live
जीव्- जीवति (jīv – jī́vati)
to die
मृ – म्रियते (mṛ – mriyáte)
to kill
हन् – हन्ति (han – hánti)
to fight
युध् – युध्यते (yudh – yúdhyate)
to hunt
मृग् – मृगयते (mṛga – mṛgáyate)
to hit
हन् – हन्ति (han – hánti), तड् – ताडयति (taḍ – tāḍáyati)
to cut
कृत् – कृन्तति (kṛt – kṛntáti)
to split
भिद्- भिनत्ति (bhid – bhinátti)
to stab
व्यध्- विधति (vyadh – vídhyati)
to scratch
लिख् – – लिखति (likh – likháti)
to dig
खन् – खनति (khan – khánati)
to swim
प्लु- प्लवते (plu – plávate)
to fly
पत् – पतति (pat – pátati)
to walk
इ – एति (i – éti), गम् – गच्छति (gam – gácchati)
to come
आगम् – आगच्छति (āgam – ā́gacchati)
to lie (as in a bed)
शी- शेते (śī – śéte)
to sit
सद् – सीदति (sad – sī́dati)
to stand
स्था – तिष्ठति (sthā – tíṣṭhati)
to turn (intransitive)
वृत् – वर्तते (vṛt – vártate)
to fall
पद् – पद्यते (pad – pádyate)
to give
दा – ददाति (dā – dádāti)
to hold
धृ – धरति (dhṛ – dhárati)
to squeeze
मृद् – मृद्नाति (mṛd – mṛdnā́ti)
to rub
घृष् – घर्षति (ghṛṣ – ghárṣati)
to wash
क्षल् – क्षालयति (kṣal – kṣā́layati)
to wipe
मृज् – मार्ष्टि (mṛj – mā́rṣṭi)
to pull
कृष् – कर्षति (kṛṣ – kárṣati)
to push
नुद् – नुदति (nud – nudáti)
to throw
क्षिप् – क्षिपति (kṣip – kṣipáti)
to tie
बन्ध् – बध्नाति (bandh – badhnā́ti)
to sew
सिव् – सीव्यति (siv – sī́vyati)
to count
गण् – गणयति (gaṇ – gáṇayati), कल् – कलते (kal – kálate)
to say
वच् – वक्ति (vac – vákti)
to sing
गै- गायति (gāi – gā́yati )
to play
दिव् – दीव्यति (div – dī́vyati)
to float
प्लु – प्लवते (plu – plávate)
to flow
सृ – सरति (sṛ – sárati), क्षर् – क्षरति (kṣar -kṣárati)
to freeze
श्यै – शीयते (śyāi – śī́yate)
to swell
श्वि – श्वयति (śvi – śváyati)
sun
सूर्य (sū́rya)
moon
मास (mā́sa), चन्द्रमस् (candramas), चन्द्र (candra)
star
नक्षत्र (nákshatra), स्तृ (stṛ)
water
जल (jalá), वारि (vā́ri)
rain
वर्ष (varṣá)
river
नदी (nadī́)
lake
सरस् (sáras)
sea
उदधि (udadhí)
salt
लवण (lavaṇá)
stone
अश्मन् (aśman)
sand
पांसु (pāṃsú), शिकता (síkatā)
dust
रेणु (reṇú)
earth
क्षम् (kṣám), पृथिवी (pṛithivī́)
cloud
नभस् (nábhas), मेघ (meghá)
fog
मिह् (míh)
sky
आकाश (ā́kā́śa)
wind
वायु (vāyú), वात (vā́ta)
snow
हिम (himá), तुषार (tuṣāra), तुहिन (tuhina)
ice
हिम (himá)
smoke
धूम (dhūmá)
fire
अग्नि (agní)
ash
आस (ā́sa)
to burn
दहति (dahati)
road
अध्वन् (ádhvan), मार्ग (mārga), रथ्या (rathyā)
mountain
गिरि (girí), पर्वत (párvata)
red
रक्त (rakta), रोहित (róhita)
green
हरित् (harít)/हरित (harita), पालााश (pā́lāśa)/पलााश (palāśa)
yellow
पीत (pīta)/पीतल (pītala)
white
श्वेत (śvetá)
black
कृष्ण (kṛṣṇá)
night
रात्र (rātrá)
day
द्यु (dyú), अहर् (áhar)
year
वर्ष (varṣá), संवत्सर (saṃvatsara)/संवत् (saṃvat)
warm
तप्त (taptá), घर्म (gharmá)
cold
शीत (śītá)
full
पूर्ण (pūrṇá)
new
नव (náva), नूतन (nū́tana)
old
जीर्ण (jīrṇá), वृद्ध (vr̥ddhá)
good
वसु (vásu), भद्र (bhadrá)
bad
पाप (pāpá)
rotten
पूति (pū́ti)
dirty
मलिन (malina), समल (samala)
straight
ऋजु (r̥jú)
round
वृत्त (vr̥ttá), वर्तुल (vartula)
sharp (as a knife)
तीक्ष्ण (tīkṣṇá)
dull (as a knife)
कुण्ठ (kuṇṭha)
smooth
श्लक्ष्ण (ślakṣṇá), स्निग्ध (snigdhá)
wet
आर्द्र (ārdrá), क्लिन्न (klinná)
dry
शुष्क (śúṣka)
correct
शुद्ध (śuddhá), सत्य (satyá)
near
नेद (neda, adj.), प्रति (prati, prep.)
far
दूर (dūrá)
right
दक्षिण (dákṣiṇa)
Sanskrit Grammar
(१.) “अष्टाध्यायी” इत्यस्य ग्रन्थस्य रचनाकारः कः ? – पाणिनिः
(२.) अष्टाध्याय्यां कति अध्यायाः ? – अष्टौ
(३.) अष्टाध्याय्यां कति पादाः ? -३२
(४.) सिद्धान्तकौमुदी इत्यस्य रचयिता क: ? – भट्टोजिदीक्षित:।
(५.) बालमनोरमाटीकाया: कर्ता क: ? – वासुदेवदीक्षित:।
(६.) तत्त्वबोधिनीव्याख्याया: कर्ता क: ? – श्रीज्ञानेन्द्रसरस्वती ।
(७.) प्रक्रियाकौमुदी इत्यस्य ग्रन्थस्य कर्त्ता कः ? – रामचन्द्रः
(८.) अष्टाध्याय्यां प्रत्याहारसूत्राणि कति ? – चतुर्दश।
(९.) प्रत्याहारसूत्रेषु कोऽयं वर्ण: द्विरनुबध्यते ?- णकार:।
(१०.) प्रत्याहारसूत्रेषु कोऽयं वर्ण: द्विरुपदिष्ट: ? – हकार:।
(११.) किमर्थमुपदिष्टानि प्रत्याहारसूत्राणि ?- अणादिप्रत्याहारसंज्ञार्थानि।
(१२.) वेदपुरुषस्य मुखात्मकं वेदाङ्गं किम् ? – व्याकरणम् ।
(१३.) हकारादिषु अकार: किमर्थम् ?- उच्चारणार्थ:।
(१४.) सूत्राणां प्रकाराः कति ? के ते ? – सप्त– संज्ञा,परिभाषा, विधि:, नियम:, निषेधः, अतिदेश:,अधिकार:।
(१५.) व्याकरणस्य कति सम्प्रदायाः सन्ति ? – अष्टौ ।
(१६.) किं नाम संज्ञासूत्रम् ? – संज्ञासंज्ञिसम्बन्धबोधकं सूत्रम् ।
(१७.) किं नाम परिभाषात्वम् ? – अनियमे नियमकारिणीत्वम् ।
(१८) किं नाम विधिसूत्रम् ? – आगम-आदेशादिविधायकं सूत्रम् ।
(१९.) सम्प्रति व्याकरणस्य प्रतिनिधिग्रन्थः कः ? – शब्दानुशासनम् ।
(२०.) को नाम नियम: ? – सिद्धे सति आरभ्यमाण: विधि: नियम: ।
(२१.) को नाम अतिदेश: ? – अविद्यमानस्य धर्मस्य विद्यमानत्वकल्पनम् ।
(२२.) किं नाम अधिकारत्वम् ? – स्वदेशेफलशून्यत्वे सति उत्तरत्र फलजनकत्वम् ।
(२३.) अष्टाध्याय्याः प्रथमसूत्रं किम् ? – वृद्धिरादैच् ।
(२४.) अन्त्यहलाम् इत्संज्ञाविधायकं सूत्रं किम् ?- हलन्त्यम् (१.३.३)
(२५.) अनुनासिकाचाम् इत्संज्ञाविधायकं सूत्रं किम् ?- उपदेशेऽजनुनासिक इत् (१.३.२)
(२६.) आदिरन्त्येन सहेता (१.१.७१) इति सूत्रेण किं विधीयते ?- प्रत्याहारसंज्ञा ।
(२७.) प्रत्याहारेषु इतामग्रहणे किं प्रमानम् ? – अनुनासिक इत्यादिनिर्देश:।
(२८.) कस्य ह्रस्व: , दीर्घ:, प्लुत: इति संज्ञा ?
उत्तरः–एकमात्राकालिकस्य अच: ह्रस्व: इति, द्विमात्राकालिकस्याच: दीर्घ: त्रिमात्राकालिकस्य अच: प्लुत: इति संज्ञा।
(२९.) अनुनासिकसंज्ञासूत्रम् किम् ?- मुखनासिकावचनोऽनुनासिक:(१.१.८)।
अमृत-सूक्त
आत्मबल-वर्धक ‘अमृत-सूक्त
अग्निर्मे वाचि श्रितः। वाग्घृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१
वायुर्मे प्राणे श्रितः। प्राणो हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।२
सूर्यो मे चक्षुषि श्रितः। चक्षुर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।३
चन्द्रमा मे मनसि श्रितः। मनो हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।४
दिशो मे श्रोत्रे श्रिताः। श्रोत्र हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।५
आपो मे रेतसि श्रिताः। रेतः हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।६
पृथिवी मे शरीरे श्रिताः। शरीरं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।७
ओषधीर्वनस्पतयो मे लोमसु श्रिताः।लोमानि हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।८
इन्द्रो मे बले श्रितः। बलं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।९
पर्जन्यो मे मूर्ध्नि श्रितः। मूर्धा हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१०
ईशानो मे मन्यौ श्रितः। मन्युर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।११
आत्मा मे आत्मनि श्रितः। आत्मा हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१२
पुनर्म आत्मा पुनरायुरागात् पुनः प्राणः पुनराकृतमागात्।
वैश्वानरो रश्मिभिर्वावृधानः अन्तस्तिष्ठन्नमृतस्य गोपाः।।१३(तैत्तिरिय ब्राह्मण, ३।१०।८)
अग्निर्मे वाचि श्रितः। वाग्घृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१
वायुर्मे प्राणे श्रितः। प्राणो हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।२
सूर्यो मे चक्षुषि श्रितः। चक्षुर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।३
चन्द्रमा मे मनसि श्रितः। मनो हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।४
दिशो मे श्रोत्रे श्रिताः। श्रोत्र हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।५
आपो मे रेतसि श्रिताः। रेतः हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।६
पृथिवी मे शरीरे श्रिताः। शरीरं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।७
ओषधीर्वनस्पतयो मे लोमसु श्रिताः।लोमानि हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।८
इन्द्रो मे बले श्रितः। बलं हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।९
पर्जन्यो मे मूर्ध्नि श्रितः। मूर्धा हृदय।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१०
ईशानो मे मन्यौ श्रितः। मन्युर्हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।११
आत्मा मे आत्मनि श्रितः। आत्मा हृदये।
हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।१२
पुनर्म आत्मा पुनरायुरागात् पुनः प्राणः पुनराकृतमागात्।
वैश्वानरो रश्मिभिर्वावृधानः अन्तस्तिष्ठन्नमृतस्य गोपाः।।१३(तैत्तिरिय ब्राह्मण, ३।१०।८)
संस्कृत वाक्य अभ्यासः
संस्कृत वाक्य अभ्यासः
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विनीता - अद्य तव वस्त्राणि बहु शोभन्ते
आज तुम्हारे वस्त्र बहुत अच्छे लग रहे हैं ।
युक्ता - अद्य मम भ्रातुः जन्मदिनम् अस्ति
= आज मेरे भाई का जन्मदिन है
युक्ता - अतः अहं नूतनं परिधानं धारितवती
= इसलिये मैंने नया परिधान पहना है ।
विनीता - अद्य तु त्वं भूषिता दृश्यसे
= आज तुम fashionable लग रही हो ।
युक्ता - एतद् मम भ्राता मह्यम् अददत्
= ये मेरे भाई ने मुझे दिया है
विनीता - कुतः आनीतवान् सः ?
= कहाँ से लाया वह ?
युक्ता - भ्राता इन्दौरं गतवान् आसीत्
= भैया इन्दौर गए थे ।
युक्ता - इन्दौरतः अनीतवान्
= इन्दौर से लाए ।
विनीता - उत्तमं चयनम् अस्ति तस्य
= उसकी पसंद अच्छी है ।
युक्ता - सः मम ज्येष्ठः भ्राता अस्ति
= वो मेरे बड़े भाई हैं
युक्ता - सः मम श्रेष्ठः भ्राता अस्ति
= वो मेरे अच्छे भैया हैं ।
Important books
प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि
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1-अस्टाध्यायी पांणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
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1-अस्टाध्यायी पांणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
Sanskrit greetings
शुभकामना: = शुभकामनाएँ
मम शुभकामना: = मेरी शुभकामनाएँ
अनुगृहीतोSस्मि = आपका आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (पुल्लिंग )
अनुगृहीताSस्मि = आपकी आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (स्त्रीलिंग )
उपकृतोSस्मि = आपका आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (पुल्लिंग )
उपकृताSस्मि = आपकी आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (स्त्रीलिंग )
धन्योSस्मि = आपका आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (पुल्लिंग )
धन्याSस्मि = आपकी आभारी हूँ , कृतज्ञ हूँ (स्त्रीलिंग )
मुदितोSस्मि = मैं खुश हूँ (पुल्लिंग )
मुदिताSस्मि = मैं खुश हूँ (स्त्रीलिंग )
अभिनन्दनम् = बधाई हो
जन्मदिवसस्य हार्दिक्य: शुभकामना: = जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
जन्मदिवसस्य कोटिश: शुभकामना: = जन्मदिन की कोटि कोटि शुभकामनाएँ
जन्मदिवसस्य अनेकश: शुभकामना: = जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएँ
जन्मदिवसस्य अभिनन्दनानि = जन्मदिन की बधाईयाँ
त्वं जीव शतं वर्धमान: = तुम सौ साल जिओ
(शुभकामना: के स्थान पर मंगलकामना: भी लिख सकते हैं , बोल सकते हैं )
पुत्र प्राप्त्यर्थं हार्दिक्य: अभिनन्दनानि = पुत्र प्राप्ति की हार्दिक बधाईयाँ
पुत्रस्य जन्मन: हार्दिक्य: अभिनन्दनानि = पुत्र के जन्म की हार्दिक बधाईयाँ
पुत्री प्राप्त्यर्थं हार्दिक्य: अभिनन्दनानि = पुत्री प्राप्ति की हार्दिक बधाईयाँ
पुत्र्या: जन्मन: हार्दिक्य: अभिनन्दनानि = पुत्री के जन्म की हार्दिक बधाईयाँ
शुभ-विवाहार्थम् अभिनन्दनानि = शुभ विवाह की बधाईयाँ
विवाहस्य वर्धापनदिनस्य अभिनन्दनानि = वैवाहिक वर्षगांठ की बधाईयाँ
यशसा वर्धते भवान् = आपकी सफलता के लिए बधाईयाँ / शुभकामनाएँ
पदोन्नति अर्थं शुभकामना: / अभिनन्दनानि = पदोन्नति के लिए शुभकामनाएँ / बधाईयाँ
समारोहस्य कृते हार्दा: शुभशया: = समारोह के लिए (कार्यक्रम के लिए ) शुभकामनाएँ
युवयोः वैवाहिकजीवने सर्वदा शुभं भवतु = आपके वैवाहिक जीवन में हमेशा शुभ हो
नवदम्पत्योः वैवाहिकजीवनं सुखमयं �
Facebook Sanskrit
Facebook मुखपुस्तकम् संस्कृतेन लिखितः
How to write in Sanskrit on FB.
Now days lot of public on Facebook. But sometimes its very difficult to understand things in English language specialmy for the Indian people , so FB makes their pages in Hindi and other Indian languages. But FB us yet make their operating language in Sanskrit, or already makes it.
I will show you how you can make your FB language set to Sanskrit.
❶ First open your FB page.
❷ Goto settings.
❸ Goto languages.
❹ Select Languages.
❺ Select language as Sanskritam as your language.
❼ Now you can use Sanskrit as your language on FB.
How to write in Sanskrit on FB.
Now days lot of public on Facebook. But sometimes its very difficult to understand things in English language specialmy for the Indian people , so FB makes their pages in Hindi and other Indian languages. But FB us yet make their operating language in Sanskrit, or already makes it.
I will show you how you can make your FB language set to Sanskrit.
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